जय हे जयभगवति सुरभारती, तव चरणौ प्रणमाम: ।।
नाद ब्रह्ममयी जय बागीश्वरी, शरणं ते गच्छाम: ।।1।।
त्वमसि शरण्या त्रिभुवन धन्या, सुर मुनि वन्दित चरणा ।
नव रस मधुरा कविता मुखरा,स्मित रूचि रूचिरा भरणा ।।2।।
आसीना भव मानस हंसे, कुन्द तुहिन शशि धवले !
हर जड़तां कुरू बोधि विकास,सित पंकज तनु विमले ! ।।3।।
ललित कलामयि ज्ञान विभामयि,वीणापुस्तक धारिणि ! ।।
मतिरास्तां नो तव पद कमले,अयि कुण्ठा विष हारिणि ! ।।4।।
जय जय हे भगवति सुरभारति, तव चरणौ प्रणमाम: ।।
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