कविता – छोटी का कमाल
समरसिंह थे बहुत अकड़ते
छोटी, कितनी छोटी
मैं हूँ आलू भरा पराँठा
छोटी पतली रोटी
मैं हूँ लंबा, मोटा तगड़ा
छोटी पतली दुबली
मैं मोटा पटसन का रस्सा
छोटी कच्ची सुतली
लेकिन जब बैठे सी-सॉ पर,
होश ठिकाने आए
छोटी जा पहुँची चोटी पर
समरसिंह चकराए।
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