गुजराती गीत
आकाश गंगा सूर्य चन्द्र तारा,
संध्या उषा कोई ना नथी |
कोनि भूमि कोनि नदी कोनि सागर धारा - 2
भेद केवल शब्द अमारा ने तमारा |
एज हास्य, एज रूदन, आश ए निराशा, आS,आS,आS,आS - 2एज मानव उर्मि, पण भिन्न भाषा |
आकाश गंगा ..........................
मेधधनु अन्दर ना होय कदी जंगी,
सुन्दरता काज वन्या विविध रंगों|
आकाश गंगा ...........................
VIDEO LINK FOR THIS SONG:::::::::
https://youtu.be/YbvHAZCOMfE
:::::::::: सरल अर्थ :::::::::
आकाश गंगा सूर्य चन्द्र तारा, संध्या उषा कोई ना नथी
(आकाशगंगा,सूर्य,चाँद,सितारे,संध्या तथा उषाकाल किसी व्यक्ति विशेष के नहीं ,बल्कि सबके सांझे है|)
कोनि भूमि कोनि नदी कोनि सागर धारा,भेद केवल शब्द अमारा ने तमारा
(यह धरती,नदियाँ तथा सागर किसके हैं? भेद केवल 'हमारा' 'तुम्हारा' आदि शब्दों के कारण है|)
एज हास्य, एज रूदन, आश ए निराशा, एज मानव उर्मि, पण भिन्न भाषा
(हंसना,रोना,आशाएं तथा निराशाएं सब में एक-सी हैं| मानवीय भावनाएं हमेशा सामान हैं,केवल भाषाएँ अलग-अलग हैं|)
मेधधनु अन्दर ना होय कदी जंगी, सुन्दरता काज वन्या विविध रंगों
(इन्द्रधनुष के रंगों में कभी झगडा नहीं होता| विभिन्न रंग केवल सौंदर्य के लिए बनाए गए हैं | )
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