NADI KA SAFER (NCERT POEM CLASS - 5)
छोटी-सी हमारी नदी टेढ़ी-मेढ़ी धार, गर्मियों में घुटने भर भिगो कर जाते पार। पार जाते ढोर-डंगर, बैलगाड़ी चालू, ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढालू। पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम, काँस फूले एक पार उजले जैसे घाम।। दिन भर किचपिच-किचपिच करती मैना डार-डार, रातों को हुआँ-हुआँ कर उठते सियार।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘रिमझिम भाग-5’ में संकलित कविता ‘छोटी-सी हमारी नदी से ली गई हैं। इसके रचयिता हैं-श्री रवींद्रनाथ ठाकुर। इन पंक्तियों में कवि ने नदी का वर्णन किया है।
अर्थ-कवि कहता है कि हमारी नदी छोटी है और इसकी धार टेढ़ी-मेढ़ी है। गर्मी के दिनों में इसमें घुटने भर तक पानी होता है। अतः इसे पार करना सबके लिए आसान होता है। चाहे वह आदमी हो या जानवर या बैलगाड़ी। इस नदी के किनारे ऊँचे हैं और इसके पाट ढालू हैं। किन्तु इसकी तली में बालू कीचड़ का नामोनिशान नहीं है। काँस के फूल खिलने पर धूप जैसे सफेद दिखते हैं। इसकी डालियों पर मैना दिनभर किचपिच-किचपिच करती रहती हैं। रात के समय सियार हुआँ-हुआँ करते हैं।
छाँहों-छाँहों बाम्हन टोला बसा है सघन।
कच्चे-बच्चे धार-कछारों पर उछल नहा लें,
गमछों-गमछों पानी भर-भर अंग-अंग पर ढालें ।
कभी-कभी वे साँझ-सकारे निबटा कर नहाना
छोटी-छोटी मछली मारें आँचल का कर छाना।
बहुएँ लोटे-थाल माँजती रगड़-रगड़ कर रेती,
कपड़े धोतीं, घर के कामों के लिए चल देतीं।।
शब्दार्थ : दूजे-दूसरा। छाँहों-छाया में। सघन-घना। सकारे-सवेरे। रेती-बालू गमछा-तौलिया।
प्रसंग-पूर्ववत्
अर्थ-नदी के बारे में वर्णन करते हुए कवि कहता है कि इसके दूसरे किनारे पर आम और ताड़ के पेड़ हैं। उन्हीं की छाँह में ब्राह्मण टोला बसा है। उनके छोटे-छोटे बच्चे किनारों पर उछल-उछल कर नहाते हैं। वे गमछों में पानी भरभर कर अपने शरीर पर उड़ेलते हैं। कभी-कभी जब वे नहाकर जल्दी निबट जाते हैं तो नदी में मछलियाँ पकड़ते हैं। उनके घर की औरतें नदी से बालू लेकर बर्तन (लोटे-थाली) माँजती हैं। फिर कपड़े धोती हैं और उसके बाद अन्य काम करने के लिए घर को चल देती हैं
जैसे ही आषाढ़ बरसता, भर नदिया उतराती, मतवाली-सी छूटी चलती तेज़ धार दन्नाती। वेग और कलकल के मारे उठता है कोलाहल, गॅदले जल में घिरनी-भंवरी भंवराती है चंचल। दोनों पारों के वन-वन में मच जाता है रोला, वर्षा के उत्सव में सारा जग उठता है टोला।
प्रसंग-पूर्ववत् ।
अर्थ-कवि कहता है कि आषाढ़ के महीने में जब खूब वर्षा होती है तब यह नदी पानी से भर (उतरा) जाती है। तब इसकी धार काफी तेज हो जाती है। इसकी तेज चाल से इतनी कलकल की आवाज आती है कि चारों ओर शोर मच जाता है। इसका पानी गंदा हो जाता है। गॅदले पानी में पानी की घिरनी भंवरी की तरह चलती है। नदी के दोनों तरफ के वनों में खूब कोलाहल मचा रहता है। वर्षा के दौरान उत्सव जैसा माहौल हो जाता है। सारा संसार जाग उठता है उत्सव मनाने के लिए .........
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