अणुव्रत-गीत
अणुव्रत-गीत
- आचार्य तुलसी
संयममय जीवन हो
नैतिकता की सुर सरिता में जन-जन मन पावन हो।
संयममय जीवन हो ।।
(1)
अपने से अपना अनुशासन, अणुव्रत की परिभाषा वर्ण, जाति या संप्रदाय
से मुक्त धर्म की भाषा छोटे-छोटे संकल्पों से मानस परिवर्तन
हो संयममय जीवन हो ।।
(2)
मैत्री-भाव हमारा सबसे प्रतिदिन बढ़ता जाए समता, सह-अस्तित्व,
समन्वय-नीति सफलता पाए शुद्ध साध्य के लिए नियोजित मात्र शुद्ध,
साधन हो संयममय जीवन हो ।।
(3)
विद्यार्थी या शिक्षक हो मजदूर और व्यापारी नर हो नारी बने नीतिमय
जीवनचर्या सारी कथनी-करनी की समानता में गतिशील चरण
हो संयममय जीवन हो ।।
(4)
प्रभु बनकर ही हम प्रभु की पूजा कर सकते हैं प्रामाणिक बनकर ही संकट
सागर तर सकते हैं शौर्य-वीर्य-बलवती अहिंसा ही जीवन दर्शन
हो संयममय जीवन हो ।।
(5)
सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा‘तुलसी’ अणुव्रत-
सिंह नाथ सारे जग में पसरेंगा मानवीय आचार संहिता में अर्पित तन-
मन होसंयममय जीवन हो ।।
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